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Monday, June 14, 2010

पर्दा- क्या सिर्फ तन ढकने के लिए.-तारकेश्वर गिरी.

पर्दा सिर्फ औरतो के लिए ही क्यों ? आज की औरत अपने हक़ लिए तरह -तरह की आवाजे उठाती रहती है, जिसमे एक पर्दा या बुरका के लिए भी। बुर्के का समर्थन तो में भी नहीं करता, बुरका तो तालिबानियों का रिवाज है मगर पर्दा इंसानों का।
आज मोडर्न शब्द हमारे देश में पूरी तरह से घुसपैठ बना चुका है, उसका असर आज की कुछ लड़कियों और महिलावो पर ज्यादा देखा जाता है।

एक जमाना था जब इन्सान को ज्ञान नहीं था, तब इन्सान नंगा रहता था। मगर जैसे - जैसे इन्सान को ज्ञान प्राप्त होता गया , इन्सान ने सबसे पहले अपने लिए वस्त्र का इंतजाम किया , चाहे शुरुवाती दौर में उसने पेड़ो के पत्तो का इस्तेमाल ही क्यों ना किया हो। मगर आज का इन्सान इतना ज्यादा ज्ञान प्राप्त कर चुका है की उसको तन ढकने की फुर्सत ही नहीं है।




भारतीय समाज का एक अपना अलग ही इतिहास रहा है, चाहे वो संयुक्त परिवार के रूप में हो या रिश्ते के रूप में। भारतीय समाज में रिश्ते की भरमार है। और इसी परिवार या रिश्ते की ही देन है की भारतीय लोग अपने समाज की और समाज के लोगो की इज्जत करना जानते हैं.
लेकिन आज का शहरी माहौल बदल चुका है, दिल्ली में कंही भी देख लीजिये, हर जगह सिगरेट के धुएं में डूबी हुई लड़कियां मिल जाएँगी। फैशन के चक्कर लोग अपराध को भी दावत देते हैं। कम से कम कपडा पहनने का शौक भी पूरा का पूरा बढता जा रहा है।

में बुर्के या परदे का समर्थन कभी भी नहीं करता , मगर अपनी मातावो और बहनों से इतना निवेदन जरुर करता हूँ की वो अपने आप पर इतना गर्व करे की, वो जिस देश में पैदा हुई हैं या जिस देश में रहती हैं वंहा पर उन्हें देवी की तरह पूजा जाता है।

16 comments:

  1. सादर वन्दे !
    आपने बिलकुल ठीक कहा | लेकिन यह जिम्मेदारी केवल उनकी ही नहीं हमारी भी बनाती है |
    रत्नेश त्रिपाठी

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  2. भारत जैसे आध्यात्मिक देश के नागरिकों के लिये इसकी अहमियत दूसरों के मुक़ाबले और भी ज़्यादा है। अपने रचयिता की दया, करूणा और सहायता पाने का यह एक सरल उपाय है कि आप खुद को भी इन ईश्वरीय गुणों का दर्पण बना लें।
    http://vedquran.blogspot.com/2010/06/true-spirituality.html

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  3. Naya naam mubarak . Pehla vote qubool mfarmayen .

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  4. गिरि भाई काम की बातें करने लगे हो, अच्‍छी बात कही आज भी आपने कि पर्दा इंसानों रिवाज का है

    आप अच्‍छी अच्‍छी बातें पेश करते रहिये हम आपके साथ हैं वैसे हम 'काम की बकवास' में भी बराबर आते थे, अब 'काम की बातें' में तो सब काम छोड के आयेंगे

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  5. पहले वस्‍त्र तन ढंकने के लिए बने थे और आज एक्‍सपोज करने के लिए बन रहे हैं।

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  6. .
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    .
    ".लेकिन आज का शहरी माहौल बदल चुका है, दिल्ली में कंही भी देख लीजिये, हर जगह सिगरेट के धुएं में डूबी हुई लड़कियां मिल जाएँगी।"

    मेरे दोस्त इसमें अनूठा क्या है? सिगरेट पीते लड़के भी तो हर जगह दिखते हैं, आज से तकरीबन ६० साल पहले भी मेरी दादी खुलेआम बीढ़ी, सिगरेट और हुक्का पीती थी... कभी किसी ने माहौल के बदलने का स्यापा नहीं किया।


    "में बुर्के या परदे का समर्थन कभी भी नहीं करता , मगर अपनी मातावो और बहनों से इतना निवेदन जरुर करता हूँ की वो अपने आप पर इतना गर्व करे की, वो जिस देश में पैदा हुई हैं या जिस देश में रहती हैं वंहा पर उन्हें देवी की तरह पूजाजाता है।"

    आपसे बेहतर तो बाकी हैं कम से कम साफ-साफ कहते तो हैं कि उन्हें सर से पैर तक ढकी, चुपचाप बताया काम करती औरतें अच्छी लगती हैं।

    बाई द वे औरतें अब खुद को पुजवाना नहीं चाहती और न ही पूजे जाने पर गर्व करना चाहती हैं... कभी सोचा है इस नजरिये से ?

    आभार!


    ...

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  7. प्रवीन शाह जी - मेरे हिसाब से गिरि जी का मतलब बिना किसी कारण के बदन की नुमाइश को रोकने से है जो कि शायद कोई भी भारतीय व्यक्ति अपने घर की महिलाओं के बारे में भी ऐसा ही सोचता होगा.

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  8. जहाँ तक परिधानों की बात है वो बात आपकी जायज़ है...ऐसा पहने जो दूसरों को ना खटके ....पर अब स्त्री को देवी मत बनाइये....इंसान बने रहने दीजिए

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  9. प्रवीण शाह ji se sahamat hu
    kya hame kapade dusaro ki socha ke hisab se pahanane chahie .kya purush bhartiy parmpara ke hisab se kurta payjama ya dhoti pahanege '

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  10. हम आपसे सहमत हैं।

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  11. आप बुर्के का समर्थन नहीं करते लेकिन परदे का समर्थ भी करते हैं और उसके सही मेने भी जानते हैं . यह ख़ुशी की बात है.

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  12. @गिरी जी नई पोस्ट तो लाओ

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  13. नारी को खुद को ही नहीं पता की उसे जाना किधर है, महिला-पुरुष बराबरी के नाम पे नारी क्या खुद ही पुरुष को श्रेष्ठ नहीं घोषित कर रही है उसकी हर बात की नक़ल को ही असली आजादी मानकर . क्योंकि अनुसरण तो उसीका किया जाता है जिसको हम ऊँचा माने . अब नारी खुद ही नारीत्व को हीन माने तो पुरुष बिचारे का क्या दोष की अपने पुरुषत्व के मद में नारी को हीन समझे .क्योंकि नारी ही तो खुद इस बात का बढावा खुद दे रही है.
    क्या कम कपडे पहने मात्र से आजादी मिल जाएगी या महा बुराई सिगरेट के छल्ले बनाने से .
    सोचना तो खुद नारी को ही पढ़ेगा नहीं तो लाभ उतने को कई दुर्गुनी तैयार बैठे है

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  14. औरत हीरे से भी ज़ियादा कीमती है इसलिए उस को छुपा कर रखना चाहिए ,
    इसी वजह से इस्लाम ने औरत को पर्दा करने के लिए कहा है
    और अगर सब औरत पर्दा करने लगे तो मुझे पूरी उम्मीद है की औरतो के साथ होने वाले अपराध जैसे बलात्कार छेड़खानी ये सब खत्म हो जायेंगे

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