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Friday, September 18, 2009

श्रीमान अवधिया जी के लिए -हिंदू -धर्म, संप्रदाय और परम्परा

श्रीमान अवधिया जी नमस्कार,

बहुत ही बढ़िया बात लिखी है आपने, वैशनव, शैव और शक्त अलग -अलग धर्मं नही थे और ना ही अलग-अलग संप्रदाय, ये तो सिर्फ़ अपनी अपनी परम्परा थी, क्योंकि हिंदू कोई धर्म नही है, ये ख़ुद भी एक परम्परा है, मेरे समझ से धर्म तो उसे कहते है जिसको मानने वाले एक ही तरह से पूजा पद्धति पर भारोशा करते हैं ना की अलग-अलग, सिख धर्म है, इशाई एक धर्म है और ख़ुद इस्लाम भी एक धर्म hai , मगर हिंदू धर्म कंहा हैं, महाराष्ट्र मैं गणेश पूजा, तो साउथ इंडिया में पोंगल, तो बंगाल में काली पूजा तो उत्तर भारत में, दीवाली, छठ दसहरा, पूर्णिमा, पंजाब में वैशाखी और लोहरी आपस में समानता भी तो नही है , उत्तर भारत में राम-कृष्ण , दुर्गा और वैशनव तो साउथ में वेंकटेश तो गुजरात में द्वारिकदीश । अभी उत्तर भारत में नवरात्रे शुरू हो चुके हैं तो लोगो के घरो से लहसुन और प्याज तक गायब हो चुके हैं, लेकिन बिहार, बंगाल आसाम, उडीसा और नेपाल में तो नवरात्रों में जानवरों की बलि तक का प्रावधान है, तो कंहा से आप या कोई हिंदू को धर्म कहता है। हिंदू सदियों से चली आ रही एक परम्परा है जिसको लोग अलग-अलग तरीके से निभाते हैं।

हिंदू तो हिंदू न कह कर के सनातन धर्म कहा जाए तो ज्यादे अच्छा रहेगा ।

हिंदू शब्द की उत्त्पति भारत के लोगो के द्वारा नही बल्कि फारसियों के द्वारा की गई है, २५०० साल पहले जब फारसियों ने भारत पर आक्रमण करना शुरू किया तो उनका मुकाबला सबसे पहले सिन्धु नदी से हुआ, जिसका उच्चारण उनके द्वारा सिन्धु ना होकर के हिंदू हुआ, और वंही से हम हिंदू हो गए।

इंडियन शब्द भी हमें दान में यूरोपियन लोगो ने दिया है , यूरोपियन लोगो नो सिन्धु नदी को इंदस रिवर कहा, वंहा से हम हो गये इंडियन .

7 comments:

  1. आपका सोचना सही लग रहा है. हम लोगों में काफी फ्लेक्सिबिलिटी है, और यह अच्छा भी है.

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  2. आपने सही विचार किया है.. हिन्दू न तो कोई धर्म है ओर न ही सम्प्रदाय...बल्कि ये तो एक संस्कृ्ति है,जिसने हर मजहब,हर परम्परा को अपने भीतर समेट लिया है...किसी के लिए कोई बन्दिश नहीं!!!

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  3. भाई साहब, आपने भी बहुत अच्छा लिखा है!

    पर आपने जो लिखा है उसे तो सभी पढ़ रहे हैं, और अच्छा कह रहे हैं, इसलिए मैं समझता हूँ कि यह सिर्फ मेरे लिए न होकर सभी के लिए है। :)

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  4. हिन्दू किसी बधी बधाई परिभाषा का मुहताज नहीं है -

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  5. भाई लोगों हिन्‍दू विषय पर मैंने कुछ किताबें पढी है उनसे मैं भी नहीं समझ पा रहा कि कौन हिन्‍दू है,
    समय समय पर विचारधारायें बदलने पर आज हिन्‍दू को पूछना पड रहा है कि कौन हिन्‍दू है,वह ‍हिन्‍दू है? जो मांस खाता है तो किया फिर आदीवासी और काली भक्त मांसाहारी हिन्‍दू नहीं हैं, मूर्ती पूजक हिन्‍दू है और किया शराब का सेवन करने वाले भी हिन्‍दू हैं या ना करने वाले,
    अनेक प्रशन उत्‍तर किसी के पास नहीं, फिर भी मे Tarkeshwar Giri से सहमत हूं कि ''हिंदू तो हिंदू न कह कर के सनातन धर्म कहा जाए तो ज्यादे अच्छा रहेगा ।''

    और सनातन धर्म या क़ुरआन और वेद से इन बातों को जाना चाहो तो पढें अगर ईश्‍वर ने आपकी किस्‍मत में पढना लिखा होगा तो

    e-Book: सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
    जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में (हैरानी के कारण) तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं विद्वान मौलाना आचार्य शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक योग्‍य शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकाने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है,
    http://www.scribd.com/doc/19003014/AGAR-AB-BHI-NA-JAGE-TO-HINDI-
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  6. उमर भाई से सहमत

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