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Tuesday, December 30, 2008

राजेंद्र यादव जी की चाहे आलोचना करी जाए या तारीफ वो तो जो कहना था कह गए, लेकिन सही नही बोले वो श्रीमान जी, यादव जी आप ख़ुद एक बहुत ही सम्मानिया पुरूष है , हमसे जयादा दुनिया देखी है आपने। क्या आप नही चाहेंगे की आने वाली पीढी आप के बारे मैं जाने , कैसे भुला सकते हैं हम अपने इतिहाश को, आपने जो भी कहा मैं ख़ुद उससे सहमत नही हूँ और मुझे ये भी पता है की मेरे सहमत होने या न होने से आपके उपर कोई फर्क भी पड़ेगा ।

तारकेश्वर गिरी

Monday, December 22, 2008

बड़ा अजीब जमाना है

बड़ा अजीब जमाना है, आज कल का, अभी कल की बात है मैं कलर चैनेल पर एक प्रोग्राम देख रहा था प्रोग्राम को छोटे-छोटे बच्चे प्रेजेंट कर रहे थे \

एक छोटी सी बच्ची मंच पर आती है और अपना प्रोग्राम चालू करती है,उस बच्ची का प्रोग्राम बिल्कुल ही फूहड़ होता है ,लेकिन उस समय बच्ची के माँ और बाप बड़े ही चटकारे ले ले कर के उसके प्रोग्राम को देखते है, उस दौरान उस प्रोग्राम मैं उपस्दिथ आयोजक भी बड़े ही मजे ले ले कर उस प्रोग्राम का आन्नद लेते हैं, लेकिन मेरे जैसा दर्सक उस प्रोग्राम को देख कर के इतना दुखी होता की बस क्या बतावूँ ,मेरा तो दिमाग ख़राब हो गया की हे प्रभु ये आज कल के कैसे माता और पिता है जी इस छोटी सी उम्र मैं अपने बच्चो को सेक्स का पाठ पढ़ा कर मंच पर प्रस्तुत कर रहें है।
किधर गया वो हमारा संस्कार जब हम अपने बच्चो को अपनी संस्कृत के बारे मैं बताना चालू करेंगे .